वलांडी गांव की प्रतिभाओं का एक अनोखा सम्मान समारोह

पुराने चौक के पास की वह ताज़गी भरी चहल पहल 

किसी ने बिल्कुल सच कहा है कि हर दिन पहले दिन की तरह नहीं होता। जो लोग अपनी एकरसता से घिरे हुए हैं, उन्हें इस बात से जीवन में नये उत्साह और आनंद के रस घोलने की प्रेरणा मिलेगी। 5 नवंबर 2021 का दिन भी आम दिनों जैसा बिल्कुल नहीं था। दुनिया के नक़्शे पर दक्षिण भारत में महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा से कुछ ही किलोमीटर के फासले पर बसे गाँव वलांडी और वहाँ के लोगों के लिए तो बिल्कुल नहीं। यहाँ कुछ नया घटने जा रहा था, जो गांव के इतिहास में अबतक नहीं घटा था, ऐसा ही कुछ। लातूर जिले के उस छोटे से गांव में चहल-पहल कुछ ज्यादा ही है। शुक्रवार/जुमे का दिन है। दोपहर बीत चुकी है। गाँव की मुख्य सड़क पर आधा किलोमीटर से अधिक दूरी तक साप्ताहिक बाज़ार सजा हुआ है। बाज़ार के आखिर में पुराने चौक से पहले, जहाँ ग्रामपंचायत का कार्यालय है, उसके बिल्कुल पास सड़क के एक किनारे पर स्टेज बना हुआ है और पूर्व सरपंच रामभाऊ भंडारे अपने कार्यकर्ताओं के साथ स्टेज को सजाने और कुर्सियाँ बिछाने में व्यस्त हैं। साथ ही साथ अतिथियों का स्वागत भी कर रहे है। स्टेज सामान्य दीपावली स्नेह मिलन का नहीं है, बल्कि इस पर देश और दुनिया से कुछ ऐसे लोग जमा हो रहे हैं, जिन्होंने जीवन के विभिन्न कार्य क्षेत्रों में अपना और अपने शहर का नाम रोशन किया है।

उद्घाटन समारोह में डॉ. जितेंदर अंबुलगे,
 नईम ग़ौरी,मुहम्दम सय्यद रफी,
रानीताई भंडारे, एफ.एम. सलीम,
संतोष महाजन, महमूद सौदागर एवं अन्य 
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देखते-देखते शाम हो गयी है और लोगों को जमा होने के लिए माइक पर आवाज़ लगायी जा रही है। ऐसा लग रहा है कि लोग पहले से इधर ही कान धरे बैठे थे। धीरे धीरे करके सारी कुर्सियाँ लोगों से भर गयी हैं। मंच की बाईं ओर जहाँ साउंड सिस्टम लगा हुआ है, एक टेबल से सटी कुर्सी पर  स्थानीय जेड़ पी स्कूल के प्राचार्य तानाजी पाटिल और एक युवती बैठी है। दोनों कार्यक्रम के संचालक हैं। मराठी, अंग्रेज़ी और हिंदी में खूब संचालन हो रहा है। फिर मंच पर एक-एक करके कुछ लोग बुलाए जा रहे हैं। मुहम्मद रफी सय्यद(पूरे गाँव में रफी भाई के नाम से मशहूर हैं), सरपंच रानीताई भंडारे, उप सरपंच महमूद सौदागर खड़े हैं।

डॉ. जितेंद्र काशीनाथ अंबुलगे
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हैदराबाद की जिनोम वैली की औषधि निर्माण की दुनिया में खास स्थान रखने वाले विंटेज बायलोजीस प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक डॉ. जितेंद्र काशिनाथ अंबुलगे के साथ हैदराबाद ही के टीटीवी न्यूज के कार्यकारी संपादक सह सीईओ नईम गौरी मौजूद हैं। इत्तेफाक से मेरा नाम(एफ एम सलीम) भी पुकारा गया है। दीप प्रज्ज्वलित किये गये और समारोह का उद्घाटन हो गया।  

वलांडी भूषण पुरस्कार समारोह

दीप प्रज्ज्वलन के साथ ही शुरू हुआ वलांडी भूषण पुरस्कार समारोह। ग्रामपंचायत के बैनर तले रफी भाई और उनके सहयोगियों ने बहुत ही अच्छा कार्यक्रम रखा है। कामयाबी और खुशी के उत्सव में जितने लोग शामिल हों, उसका मजा उतना ही बढ़ता है। यहाँ डॉ. जितेंद्र काशिनाथ अंबुलगेजी मौजूद हैं और उनके साथ मौजूद हैं, विभिन्न शहरों से अपने गांव आये कुछ खास लोग।  भारतीय लोकसेवा, महाराष्ट्र लोक सेवा, पुलिस, सेना, चिकित्सा, पत्रकारिता, शिक्षण-प्रशिक्षण, अभियांत्रिकी एवं अन्य क्षेत्रों की प्रतिभाएं मौजूद हैं। 

डॉ. जितेंद्र अपने संबोधन में औषधि निर्माण के क्षेत्र में अपने संघर्ष की कहानी सुनाते हैं। बताते हैं कि भारत में स्वदेशी इंसूलीन तैयार करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने लगातार कई वर्षों तक काम किया और आज उनके नाम पर 49 पेटेंट हैं। उन्होंन दो दर्जन से अधिक देशों की यात्रा की है। जीवन में कुछ अच्छा करने के लक्ष्य के साथ आगे वे बढ़ें। भावना इतनी प्रबल थी कि मुश्किल रास्ते भी आसान होते गये। कड़े परिश्रम की प्रेरणा देते हुए उन्होंने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की वह घटना सुनायी, जब राष्ट्रपति रहते हुए वे डॉ. जितेंद्र की कंपनी के अमंत्रण पर उनकी टीम से मिलने आये। बहुत ही प्रेरक घटनाओं से भरे उनके संबोधन के बाद स्टेज पर पुरस्कारों का लंबा सिलसिला चलता रहा।

विशेष अतिथि नईम गौरी के साथ
मुहम्मद रफी सय्यद और महमूद सौदागर
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काफी लोगों ने अपने विचार रखे। जब मुझे अपना मंतव्य रखने के लिए बुलाया गया तो मैं, सोचने लगा कि क्या कहूँ। हालाँकि तैयारी तो बहुत कर रखी थी और कहने के लिए भी बहुत कुछ था, लेकिन समय केवल पाँच से दस मिनट।  हैदराबाद से प्रकाशित होने वाले दक्षिण भारत के सबसे बड़े समाचार पत्र डेली हिंदी मिलाप ब्युरो चीफ के पद पर काम कर करने तक का सफर मैंने इसी गांव से शुरू किया था। अपने छोटे से जीवन में बहुत सारी संस्थाओं के साथ जुड़ा। भारत के मशहूर स्टार्टअप वेबसाइट योर स्टोरी में दो वर्ष तक डिप्युटी एडीटर के रूप में काम करने के अलावा तेलंगाना के डॉ. बी आर. अंबेडकर सार्वत्रिक विश्वविद्यालय में पढ़ाने और पाठ्यक्रम लेखन और संपादन, कई पुस्तकों का अनुवाद और रचनात्मक लेखन बहुत सारे अनुभव थे। यूँ अगर मैं अपनी और अपने संघर्ष की कहानी कहने बैठ जाऊँ तो वह पूरी रात काफी नहीं होती, बल्कि अलिफ लैला की कहानियों की तरह हर रात के अंत में दिलचस्प मोड़ के साथ एक कहानी में अगली रात के लिए दूसरी कहानी पैदा होती।

रफी भाई ने जब इस कार्यक्रम का निमंत्रण पत्र भेजा तो खुशी का ठिकाना नहीं था। कुछ देर में कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों के भी फोन आये। रफी भाई ने कहा कि इस अवसर पर कुछ बोलना भी है, ताकि नयी जनरेशन के लोगों को कुछ प्रेरणा मिले।

मेरी कहानी के प्रेरक किरदार

पता नहीं मैं अपनी कहानी की शुरूआत कैसे करूँ, लेकिन मेरी कहानी में सबसे पहला अगर कोई किरदार है तो वो मेरे पिताजी हैं। उन्होंने जीवन में बड़ा संघर्ष किया और सबसे बड़ी बात यह थी कि उस संघर्ष की भावना और उसके महत्व के बीज मेरे मन में बो दिये। ऐसा करना कभी कभी बहुत ही धनी, बहुत ही पढ़े लिखे और बहुत ही विद्वान आदमी के लिए भी मुश्किल होता है। शायद इसीलिए मैं अपने पिताजी को अपनी पढ़ाई से भी बहुत ऊपर मानता हूँ। मुझे पत्रकार बनाने में उन्हीं के एक शौक की बड़ी भूमिका रही। वह थी रेडियो। दिन रात घर में रेडियो पर फिल्मी गीत बजा करते थे। उन्हें समझने की तो उम्र वह नहीं थी, लेकिन सुनने में बड़े अच्छे लगते थे और फिर सुनकर कापियाँ भरा करता था। पत्रकारिता में यही गुण सबसे अच्छा माना जाता है।

एफ एम सलीम
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अकसर लोग पूछते हैं कि आपको यह सब करने के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली? तीस साल पहले मेरी अधिकतर प्रेरणाएं, इसी वलांडी गांव के गली कूचों में मौजूद थीं। मेरे साथ समारोह में मौजूद बहुत ही प्रिय, भावनाओं का साझी संतोष महाजन बैठा हुआ है। वो कभी मुझे मामा कह कर संबोधित किया करता था, आज कुछ बड़ा हुआ है तो भैया कहता है। संतोष से मेरा स्नेह का कुछ ऐसा रिश्ता रहा है, जो शायद मेरा अपना सगा छोटा भाई भी होता तो इतना स्नेह नहीं होता। उनके पिता प्रेम महाजन और मेरे पिता वाहेद मुर्शद बहुत गहरे दोस्त थे। प्रेम महाजन को याद करूँ तो लगता है कि उनकी तरह अच्छे आदमी दुनिया में बहुत कम मौजूद हैं। इनके दादाजी के भाई मेहकर गुरूजी का चेहरा, मुझे अब भी स्पष्ट रूप से याद है। वे वलांडी में मेरे पिता के सबसे अच्छे दोस्त थे। एक और चेहरा था, हनीफ चाचा यानी हनीम मुल्लाँ का। उनकी मौत पर मैं बहुत रोया था। इसलिए कि मेरा सबसे अच्छा दोस्त मैंने खो दिया था। जब पिताजी स्कूल में मेरी परफार्मेंस पर मायूस होते, तो हनीफ चाचा और मेहकर गुरूजी ही थे, जो पिताजी को विश्वास दिलाते कि मैं जिंदगी में कुछ अच्छा जरूर करूँगा।

वलाँडी के बारे में चाहे लोग कुछ भी कहें, लेकिन यह अच्छे लोगों से भरी हुई है। उन्हीं अच्छे लोगों में एक बड़ा नाम था यासीन मुल्लाँ का। अपने आपमें मेरा विश्वास बढ़ाने में उनकी हौसला अफज़ाई को मैं कभी नहीं भूल सकता। भगवान ने यहाँ के लिए अच्छे लोगों को बनाने की फैक्टरी बंद नहीं की है, बल्कि ऐसे लोगों की संख्या काफी अधिक है। 

पिता का महत्व

मैं हर बच्चे और बड़े से यह कहना चाहूँगा कि बाप जैसे पेड़ की छाया सबसे कीमती है। जब तक वे जिंदगी में रहते हैं, उनकी अहमियत का पता नहीं चलता। हो सकता है कि बाप दूसरों की तरह अमीर न हो, कोई बड़े पद पर न हों, कोई इंजीनियर या डॉक्टर न हों, हो सकता है कि दुनिया की ओर से तोलने वाली कोई महानता उनमें न हो, लेकिन जिंदगी की अच्छाइयाँ भी एक पुत्र के रूप में पिता में देखनी चाहिए। मेरे पिता मेरे लिए दुनिया के सबसे अच्छे व्यक्ति थे। इसलिए भी कि उन्होंने कभी किसी का बुरा नहीं सोचा। इतने दोस्त बनाए कि आज मेरे लिए ऐसे करना नामुम्किन है। हनुमान मंदिर के पुजारी से लेकर स्कूल के शिक्षक और पटेल से लेकर पटवारी तक सब से उनके बहुत अच्छे संबंध थे और उनकी यही विशेषता ने मुझे पत्रकारिता में पब्लिक रिलेशन के गुण सिखाये है।

संचालन कर रहे जिल्लाह परिषद स्कूल के प्राचार्य
 तानाजी पाटिल और युवा कवयित्री 
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शिक्षकों में सबसे पहला चेहरा भंडारे गुरूजी का याद आता है, फिर पाटिल गुरुजी, मेहेत्रे सर, बिरगे, कुलकर्णी, उमाटे गुरूजी, बहुत लंबी सूची है। सब का कुछ न कुछ हिस्सा जीवन के निर्माण में रहा है।

इसी तरह की एक लंबी सूची हैदराबाद में भी है। यहाँ पर कुछ ऐसे लोगों से संपर्क हुआ, जिसका एक सामान्य आदमी कल्पना भी नहीं कर सकता। हालाँकि पत्रकार होने के नाते कई बड़ी शख्सियतों, अभिनेताओं, साहित्यकारों, राजनेताओं से मिलने का मौका मिलता रहा है, लेकिन कुछ खास लोगों से दोस्ती का जिक्र मैं यहाँ जरूर करना चाहूँगा। राजा धनरागीरजी की पुत्री राजकुमारी इंदिरा धनारजगीर जी और उनके जीवन साथी और तेलुगु भाषा के महाकवि शेषेंद्र शर्मा ने हैदराबाद के शुरूआती दिनों में मुझे अपने होने की वह फीलिंग दी, जो जीवन भर याद रहेगी। जब भी कोई अतिथि देश विदेश से आते तो मैं उनके दस्तरख्वान का हिस्सा होता।  

वलांडी में मैंने दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त की थी और उसके बाद उस्मानिया विश्विविद्यालय से उर्दू और हिंदी में डबल एम ए किया और सफर प्री पीएचडी तक पहुँचा। फिर परीक्षाओं का सिलसिला शायद रुका होगा, लेकिन पढ़ने का सिलिसिला नहीं रुका। हर दिन अपने आपसे पूछता हूँ कि आज मैंने क्या पढ़ा?

नशे से दूर ही रहें 

एक और बात लोग अकसर पूछते हैं और मैं अपने गांव के कुछ नौजवानों की स्थित देखकर भी दुखी हो जाता हूँ, वह है नशे की आदत। नशा चाहे, शराब का हो गांजे का हो या फिर किसी और चीज़ का, वह निश्चित ही चरित्र को पाक साफ बनाए रखने में घातक हो सकता है। कभी कभी जिंदगी को बर्बाद करके रखता है। इससे दूर ही रहना अच्छा है। हालाँकि पत्रकार होने के नाते हर आए दिन इस तरह की पार्टियों की दावत मिलती ही है, जिसमें महंगी से महंगी शराब पानी की तरह बहती है, इसके बावजूद उसने मुझे अपनी ओर आकर्षित नहीं किया। ना ही सिगरेट, पान और गुटखे का प्रभाव। इसके लिए मजबूत इरादों का निर्माण व्यक्ति में होना चाहिए। अच्छे चरित्र के निर्माण में माता पिता के साथ साथ आस पास के लोगों के भी जिम्मेदारी निभानी होती है।

मुहम्मद रफी सय्यद
इतनी सारी उपलब्धियों के बावजूद मुझे अपने नाम की तरह रहने में बड़ी खुशी होती है। मैं अपने को फक़ीर कहलाना पसंद करता हूँ। छठी कक्षा में पढ़ी हुई संत तुकड़ोजी की कविता आज भी याद है-

 राजास जी महाली, सौख्ये कधी मिळाली

 ती सर्व प्राप्त झाली, या झोपडीत माझ्या

मूहम्म रफी सय्यद के विचार

मूहम्म रफी सय्यद जो रिश्ते में मेरे भाई भी हैं। उनका अपना अलग संघर्ष रहा है। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में काम करने के साथ साथ, सैकड़ों लोगों की मदद की है। गांव में एक स्कूल चला रहे हैं। कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब उन्होंने वलांडी की प्रतिभाओं को अपने गांव आमंत्रित करने का विचार किया तो वे आश्चर्यचकित रह गये कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने अपने आपको विभिन्न क्षेत्रों में मनवाया है। उन्होंने कहा कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी रहें, शिक्षा प्राप्त करना और कुछ कर दिखाने की भावना के साथ काम करना चाहिए।  

रानीताई भंडारे का ग्रीन गांव

रानीताई भंडारे

बातें तो बहुत हुईं। कार्यक्रम भी संपन्न हुआ, लेकिन कार्यक्रम की यादें जीवन में लंबे समय तक बनी रहेंगी। सरपंच रानीताई भंडारे ने भी अपनी खनकती आवाज़ में जबर्दस्त भाषण दिया। वह मेरी सहपाठी है। स्कूल के दिनों भी अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहा करती थीं और अब उन्होंने गांव में क्लीन और ग्रीन अभियान के साथ साथ बहुत सारी गतिविधियों में सक्रिय हैं। संतोष महाजन ने अपने संघर्ष की कहानी सुनाई। बहुत ही दिल को छू लेने वाली कहानी।

नाम ही नाम

संतोष महाजन
समारोह में डॉ. जीतेंद्र के अलावा नरसिंह ईश्वर कटके, संतोष महाजन, अनिल चिल्लरगे, प्रशांत राचोटी, सतिष बच्चेवार, बस्वराज मधुकर पाटिल, पल्लवी अनंत पाटिल, मयुरी धनाजी पाटिल, हबीब खान पठान, शुभम विजयकुमार उमाटे, धनराज भंडारे, जगजीवन साबने, मंगेश बनाळे, राम बालाजी वाघमारे, गंगाधर ज्ञानोबा डोंगरे, जमील बौडीवाले, विजय भंडारे, सत्यजीत बनसोड़े, विट्ठल पिटले, सचिन गरड, लतीफ सौदागर, मिथुन बापुरेटे, संगमेश महाजन सहित बहुत सारे नाम शामिल हैं।

सम्मान समारोह काफी दिलचस्प है। इसमें उन डॉक्टरों के नाम भी हैं, जिन्होंने कोरोनाकाल में योद्धाओं की तरह काम किया। उनमें डॉ. बिरादार विद्यासागर प्रभाकर, डॉ. गरड विलास, डॉ. सय्यद जावेद महमूद, डॉ. गुंजरगे, डॉ. भारती प्रल्हाद रामाराव, डॉ. सय्यद पीरजादे, डॉ. सावंद ए. आर., डॉ. शिंदे उत्तम नरसिंह राव और अरसनाके गोविंद राव शामिल हैं।

गांव के आदर्श लोगों के नाम भी शामिल हैं। आदर्श शतकरी माधवराव कवठाळे, आदर्श नागरिक रामविलास बंग, आदर्श व्यापारी रामलिंग टिपराळे के अलावा ग्रामपंचायत के आशा एवं आंगनवाड़ी कर्मी, आशा कर्मी तथा सफाई कर्मियों का सम्मान भी महत्वपूर्ण रहा।

कुल मिलाकर वलांडी गाँव के लिए यह कार्यक्रम एक आदर्श और भविष्य के लिए दिशा दिखाने वाला कार्यक्रम रहा, जो सभी प्रतिभाओं के स्मृतियों का हिस्सा बन गया।

......एफ एम सलीम -9848996343

fmsaleem@gmail.com

 

 

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